फागू महतो ने दो एकड़ जमीन में खोद दिया तालाब

पिता का सपना साकार करने में लगे 23 साल

धनबाद (प्रदीप प्रसाद ) । पैतृक तालाब से पिता को बेदखल किया तो बेटे ने दो एकड़ जमीन 23 साल तक खोदकर तालाब बना डाला। संघर्ष की यह कहानी उस ७० साल के युवा फागू महतो की है, जो पिता के अरमान को पूरा करने के लिए हर मौसम और परिस्थिति से लड़ते रहे। वे तालाब को और गहरा करने के लिए आज भी रोज खुदाई करते हैं। बिहार के माउंटेनमैन दशरथ मांझी की तरह इन्हें भी झारखंड का दशरथ मांझी कहा जा सकता है। दशरथ मांझी ने जहां पत्नी की याद में छेनी-हथौड़े से पहाड़ को काटकर रास्ता बनाया था, वहीं फागू महतो ने पिता के सम्मान के लिए गैती-कुदाल से धरती का सीना चीरकर जलधारा बहा दी।
दरअसल, यह वाकया बाघमारा प्रखंड स्थित पातामहुल गांव का है। बात उस समय की है, जब फागू के पिता भरत महतो अन्य भाइयों के साथ संयुक्त परिवार में रहते थे। उनके पास दो तालाब थे, जिनमें वे मछली पालन करते थे। एक दिन मछली के बंटवारे को लेकर भाइयों में विवाद हो गया। भाइयों ने भरत महतो को हिस्सा देने से मना कर दिया। उनके इकलौते बेटे फागू को जान से मारने की धमकी दे डाली। भाइयों की धमकी से भरत महतो काफी आहत हुए। दुखी होकर भाइयों से कहा कि तुम लोग दोनों तालाब रख लो। अब मैं अपने बेटे के लिए खुद तालाब खोदूंगा, जिसमें मेरा बेटा मछली पालेगा। इसके बाद भरत ने १९९० से तालाब खोदना शुरू किया, लेकिन तीन साल बाद उनकी मौत हो गई। इसके बाद फागू खुदाई में लग गए।
तालाब खोदने के लिए रिटायरमेंट से आठ साल पहले छोड़ दी नौकरी
१९९३ में जब मृत्यु हुई उस समय फागू भूली स्थित जालान फैक्ट्री में काम करते थे। परिवार चलाना था, इसलिए महीने में १५ दिन फैक्ट्री में काम करते थे और १५ दिन तालाब खोदते थे। तालाब की खुदाई में देर होती देख रिटायरमेंट के ८ साल पहले ही वर्ष २००८ में जालान फैक्ट्री की नौकरी छोड़ दी और दिन-रात तालाब खोदने में जुट गए। अंतत: उनका सपना साकार हुआ।