स्वामी विवेकानंदकी गुरुभक्ति

 प्रेरक प्रसङ्ग : स्वामी विवेकानंद 


जो व्यक्ति समाजके कल्याणार्थ कष्ट उठानेको सिद्ध (तैयार) होता है, वही व्यक्ति अपने लक्ष्यको पाकर यशस्वी होता है ।


स्वामी विवेकानंदकी गुरुभक्ति और साधनासे प्रसन्न हो, उनके गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंसने  उन्हें सम्पूर्ण विश्वमें सनातन धर्मका प्रचार-प्रसार करनेका आशीर्वाद दिया; परन्तु गुरुका आदेश था कि ‘मां’से (स्वामीजीकी पत्नीसे) आशीर्वाद लेकर ही इस कार्य हेतु निकलें ।


स्वामीजी गुरु आज्ञा पालन हेतु मांके पास गए और आशीर्वाद मांगा । मांने कहा, “इतनी शीघ्रता क्यों ? दो चार दिवस रुक जाओ, तब जाना ।” स्वामीजी मांकी आज्ञा पालन हेतु रुक गए । तीसरे दिवस मांने स्वामीजीको चाकू लानेके लिए कहा; क्योंकि उन्हें कोई फल काटना था । स्वामीजीने मांको चाकू लाकर दिया । मांने आशीर्वाद देते हुए कहा, “जा, तू यशस्वी होगा । तुम्हारे 'मिशन'में तेरा यश सूर्यके प्रकाश समान चहुं ओर प्रसारित होगा ।’’ अचानक मांके मुखसे आशीर्वादके बोल सुन स्वामीजीने मांसे कहा, “अचानक ही आशीर्वाद दे दिया आपने, कुछ विशेष बात है क्या ?” मांने कहा, “हां, मैं तुम्हारी अन्तिम परीक्षा लेना चाहती थी और तुम उसमें सफल हो गए ।


तुमने जिस प्रकार चाकूके मूठको (हैंडलको) मेरी ओर और चाकूकी 'धारवाला' भाग अपनी ओर रखकर मुझे चाकू दिया, उसीसे मैं समझ गई कि तुम अब समष्टि साधनाके लिए 'तैयार' हो गए हो, जब किसीकी प्रवृत्तिमें यह वृत्ति आ जाए कि जिससे सामनेवालेको कष्ट हो तो उसे अपनी ओर कर ले और जिससे सामनेवालेको सुविधा, वह उसकी ओर हो, ऐसे प्रवृत्तिके त्यागी व्यक्ति ही समाजका उद्धार कर सकते हैं और उन्हें यश भी प्राप्त होता है ।" यह कह मांने स्वामीजीके मस्तकपर अपना वरदहस्त रख दिया ।

🙏💐जय हो मां💐🙏