जमीन से ३९९ फीट की ऊंचाई पर बना है नरवर का किला

शिवपुरी। नरवर की स्थापना राजा नल ने की थी। भगवान राम के पुत्र कुश से कुशवाह या कछवाह वंश की उत्पत्ति हुई थी। कुश का पुत्र अतिथि और उसका पुत्र निषध था। इसी निषध के पुत्र नल ने रोहतासगढ़से पश्चिम दिया में आकर नलपुर-नलवर या नरवर को बसाया था। नल का पुत्र ढोला, ढोला का पुत्र लक्ष्मीसेन और लक्ष्मीसेन का पुत्र वङ्का धाम, वङ्का धाम का पुत्र मंगलराय मंगलराय का पुत्र कतराय उर्पâ कीर्ति राज, कतराय का पुत्र मूलवे और मलेव का पुत्र पदमपाल और पदमपाल का पुत्र सेर्यापाल और सूर्यपाल का पुत्र महीपाल था। इस वंश का अंतिम शासन दूल्हा देव अपने भांजे परमादेव प्रतिहार को नरवर से विस्थापित कर दिया गया था यह घटना ११२७ ई. सन की है। प्रतिहारों को कुछ समय बाद रत्नागिरि के गिरेद्र के स्वामी परमादि देव के पुत्र चाहड के द्वारा विस्थापित किया गया। १२३४ ई. सन में चाहड देव ने नरवर आकर नए साम्राज्य जज्पेल्ल या यजपेल वंश की स्थापना की। सन १२५४ में चाहड की मृत्यु के उपरांत नरवर्मनदेव नरवर का शासन बना। इसके पुत्र आसल्पदेव ने अपनी रानी लावण्यदेवी और प्रधानमंत्री देवधर की सहायता से नरवर राज्य की सीमाओं का भारी विस्तार किया। आसल्य देव का उत्तराधिकारी गोपाल देव गणपति था। सन १२९४ में इसकी पराजय अलाउद्दीन खिलजी के हाथों हुई और इस वंश का अंतिम शासक कहलाया। इसके बाद शताब्दी तक नरवर मुस्लिम सुलतानों के अधीन रहा। इसके बाद १४०० से १५२७ तक नरवर पर तोर शासकों को अधिकार आ गया। यहां राजा अचल ब्रह्मा ने तोर शासन की नींव डाली थी। इसके बाद वर्ष १६४२ में औरंगजेब ने अमरसिंह को नरवर की गद्दी सौंपी। २१ फरवरी १७०७ में औरंगजेब की मृत्यु के बाद इस किले पर उसके बेटे बहादुरशाह का राज रहा। उसने ये किला खांडेराव को सौप दिया। १८०४ में सिंधिया ने शिवपुरी पर अपना अधिकार कर लिया। इसके बाद वर्ष १९०० में जीवाजी राव ने सिंधिया ने इस किले का जीणोद्धार कराया था।